Devasthan Department, Pune
श्री सारणेश्वर महादेव नमः
श्री गणेशाय नमः
कुलदेवी माताय नमः

!! जय महादेव !!

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

 भारतीय दर्शन

भारत के दार्शनिक सम्प्रदाय साधारणत: आस्तिक और नास्तिक वर्गों में रखा जाता है। वेद को प्रामाणिक मानने वाले वैदिक दर्शन को ’आस्तिक’ तथा वेद को अप्रमाणिक मानने वाले दर्शन को ’नास्तिक’ कहा जाता है।

1. आस्तिक दर्शन छ: हैं जिन्हें सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त कहा जाता है।
    इनके प्रणेता कपिल, पतंजलि, गौतम, कणाद, जैमिनि और व्यास थे।

इन सभी दर्शनों के अपने-अपने विषय हैं। जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाता है –

Jivan

१. मीमांसा दर्शन – इसमें धर्म एवम् धर्मी पर विचार किया गया है। यह यज्ञों की दार्शनिक विवेचना करता है लेकिन साथ-साथ यह अनेक विषयों का वर्णन करता है। इसमें वेदों का नित्यत्व और अन्य शास्त्रों के प्रमाण विषय पर विवेचना प्रस्तुत की गई है।

२. न्याय दर्शन – इस दर्शन में किसी भी कथन को परखने के लिए प्रमाणों का निरुपण किया है। इसमें शरीर, इन्द्रियों, आत्मा, वेद, कर्मफल, पुनर्जन्म आदि विषयों पर गम्भीर विवेचना प्राप्त होती है।

३. योग दर्शन – इस दर्शन में ध्येय पदार्थों के साक्षात्कार करने की विधियों का निरुपण किया गया है। ईश्वर, जीव, प्रकृति इनका स्पष्टरूप से कथन किया गया है। योग की विभूतियों और योगी के लिए आवश्यक कर्तव्य-कर्मों का इसमें विधान किया गया है।

४. सांख्य दर्शन – इस दर्शन में जगत के उपादान कारण प्रकृति के स्वरूप का वर्णन, सत्त्वादिगुणों का साधर्म्य-वैधर्म्य और उनके कार्यों का लक्षण दिया गया है। त्रिविध दुःखों से निवृत्ति रूप मोक्ष का विवेचन किया गया है।

५. वैशेषिक दर्शन – इसमें द्रव्य को धर्मी मानकर गुण आदि को धर्म मानकर विचार किया है। छः द्रव्य और उसके 24 गुण मानकर उनका साधर्म्य-वैधर्म्य स्थापित किया गया है। भौतिक-विज्ञान सम्बन्धित अनेको विषयों को इसमें सम्मलित किया गया है।

६. वेदान्त दर्शन – इस दर्शन में ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया गया है तथा ब्रह्म का प्रकृति, जीव से सम्बन्ध स्थापित किया गया है। उपनिषदों के अनेको स्थलों का इस ग्रन्थ में स्पष्टीकरण किया गया है।

वेदांत दर्शन छह दर्शनो में विभाजित हो गया, जिनमें से प्रत्येक ने अपने तरीके से ग्रंथों की व्याख्या की और अपनी उप-टिप्पणियों की श्रृंखला तैयार की:
  • अद्वैत (आदि शंकराचार्य): यह बताता है कि व्यक्तिगत आत्मा (आत्मा) और ब्रह्म दोनों एक ही हैं, और इस अंतर को जानने से मुक्ति मिलती है।
  • विशिष्टाद्वैत (रामानुज): यह मानता है कि सभी विविधता एक एकीकृत संपूर्ण में समाहित है।
  • द्वैत (माधवाचार्य): यह ब्रह्म और आत्मा को दो अलग-अलग सत्ता मानता है, और भक्ति को शाश्वत मोक्ष का मार्ग मानता है।
  • द्वैताद्वैत (निम्बार्क): यह बताता है कि ब्रह्म सर्वोच्च वास्तविकता है, जो सभी का नियंत्रक है।
  • शुद्धाद्वैत (वल्लभाचार्य): यह बताता है कि ईश्वर और व्यक्तिगत आत्मा दोनों एक ही हैं, और भिन्न नहीं हैं।
  • अचिंत्य भेद अभेद (चैतन्य महाप्रभु): यह इस बात पर जोर देता है कि व्यक्तिगत आत्मा (जीवात्मा) ब्रह्म से भिन्न भी है और भिन्न भी नहीं है।

2. इनके विपरीत चार्वाक, बौद्ध और जैन दर्शनों को ’नास्तिक दर्शन’ के वर्ग में रखा जाता है।

इन दर्शनों में अत्याधिक आपसी विभिन्नता है। किन्तु मतभेदों के बाद भी इन दर्शनों में सर्वनिष्ठता का पुट है। कुछ सिद्धांतों की प्रमाणिकता प्रत्येक दर्शन में उपलब्ध है। इस साम्य का कारण प्रत्येक दर्शन का विकास एक ही भूमि भारत में हुआ, ये कहा जा सकता है। एक ही देश में पनपने के कारण इन दर्शनों पर भारतीय प्रतिभा, निष्ठा और संस्कृति की छाप अमिट रूप से पड़ गई है। इस प्रकार भारत के विभिन्न दर्शनों में जो साम्य दिखाई पड़ते हैं, उन्हें “भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताएँ” कहा जाता है। ये विशेषताएँ भारतीय विचारधारा के स्वरूप को पूर्णत: प्रकाशित करने में समर्थ हैं। इसीलिये इन विशेषताओं का भारतीय दर्शन में अत्याधिक महत्त्व है।

भारत के सभी दार्शनिक विश्व को दु:खमय मानते हैं| इसमें कोई संदेह नहीं। परन्तु वे विश्व के दु:खों को देखकर मौन नहीं हो जाते, बल्कि वे दु:खों का कारण जानने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक दर्शन यह आश्वासन देता है कि मानव अपने दु:खों का निरोध कर सकता है। दु:ख निरोध को भारत में इसे मोक्ष कहा जाता है। चार्वाक को छोड़ कर यहाँ का प्रत्येक दार्शनिक मोक्ष को जीवन का परम लक्ष्य मानता है। सच पूछा जाय तो भारत में मोक्ष को पाने के लिए ही दर्शन का विकास हुआ है। मोक्ष ऐसी अवस्था है जहाँ दु:खों का पूर्णतया अभाव होता है। कुछ दार्शनिकों ने मोक्ष को आनन्दमय अवस्था कहा है। यहाँ के दार्शनिक केवल मोक्ष के स्वरूप का ही वर्णन कर चुप नहीं हो जाते हैं, बल्कि मोक्ष पाने के लिए प्रयत्न करते हैं। प्रत्येक दर्शन में मोक्ष को पाने के लिए मार्ग का निर्देश किया गया है।

बुद्ध के कथानुसार एक मानव मोक्ष को ’अष्टांगिक’ मार्ग पर चलकर पा सकता है। अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं — सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक आजीविका, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति, और सम्यक् समाधि।

जैन–दर्शन में मोक्ष को पाने के लिए सम्यक दर्शन (right faith), सम्यक ज्ञान(right knowledge) और सम्यक चरित्र (right conduct) नामक त्रिमार्ग का निर्देश किया गया है।

सांख्य और शंकर के अनुसार मानव, ज्ञान के द्वारा अर्थात वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को जान कर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

मीमांसा के अनुसार मानव कर्म के द्वारा मोक्षावस्था को प्राप्त कर सकता है। भारतीय दर्शन में मोक्ष और मोक्ष के मार्ग की अत्याधिक चर्चा है जिसके कारण भारतीय दर्शन को निराशावादी कहना भूल है।

चार्वाक को छोड़कर यहाँ का प्रत्येक दार्शनिक आत्मा की सत्ता में विश्वास करता है। उपनिषद से लेकर वेदांत तक आत्मा की खोज पर जोर दिया गया है। यहाँ के ऋषियों का मूल मंत्र है आत्मानं विद्धि (Know thyself)।

भारतीय दर्शन अध्यात्मवाद का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ के दार्शनिकों ने साधारणतया आत्मा को अमर माना है। आत्मा और शरीर में यह मुख्य अन्तर है कि आत्मा अविनाशी है जबकि शरीर का विनाश होता है।



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